Himachal CPS controversy: हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की रणनीति को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य संसदीय सचिव (CPS) और लाभ के पद से जुड़े विवाद में कांग्रेस सरकार को राहत दी है। कोर्ट ने हिमाचल लैजिस्लेटिव असैंबली मेंबर्स एक्ट 1971 की धारा 3(D) को बहाल करते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। इससे कांग्रेस के 9 विधायकों की सदस्यता पर संकट टल गया है।
हाईकोर्ट द्वारा हटाई गई धारा 3(D) की वजह से छह पूर्व CPS और तीन कैबिनेट रैंक वाले विधायकों की सदस्यता खतरे में थी। बीजेपी ने इन 9 विधायकों की विधायकी को चुनौती देने की योजना बनाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के स्टे ने पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
बीजेपी ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद राज्यपाल से संपर्क करने और 9 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की कानूनी प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी की थी। वहीं, कांग्रेस सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत ली है।
कांग्रेस विधायकों पर संकट क्यों था?
हाईकोर्ट के फैसले ने लाभ के पद पर नियुक्त पूर्व CPS को कानूनी सुरक्षा से वंचित कर दिया था। यदि सुप्रीम कोर्ट ने स्टे नहीं दिया होता, तो राज्यपाल को इन विधायकों को अयोग्य ठहराने का आदेश देना पड़ता। इनमें विधायक भवानी सिंह पठानिया, आरएस बाली और नंद लाल भी शामिल थे, जिन्हें कैबिनेट रैंक पर नियुक्तियां दी गई थीं।
बीजेपी बनाम कांग्रेस विवाद
इस राजनीतिक विवाद ने सियासी तापमान बढ़ा दिया है। बीजेपी ने जहां कांग्रेस सरकार को गिराने तक की बात कही थी, वहीं कांग्रेस भी पलटवार की तैयारी में थी। कांग्रेस ने विधानसभा बजट सत्र में बीजेपी के 9 विधायकों पर अनुशासनहीनता के आरोप लगाए हैं। यदि कार्रवाई होती, तो यह मुकाबला 9-9 विधायकों के बीच हो सकता था।
भविष्य में क्या?
अब CPS केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में पंजाब, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के समान मामलों के साथ होगी। फिलहाल, हिमाचल में उपचुनाव की स्थिति नहीं बनेगी।